प्रयाग राज में कुम्भ स्नान के मेरे
संस्मरण
जनवरी 2013 में ही
हमारा इलाहाबाद में चल रहे कुम्भ स्नान की यात्रा का कार्यक्रम बन गया था |
मेरे बहनोई अशोक गोस्वामी ने 23/2/2013
में कालका मेल में इलाहाबाद के लिए स्थान आरक्षित करा लिए थे | 31-12-2012 में सेवा निवृत हो जाने के बाद यह
मेरी पहली यात्रा थी | कुल 16 सदस्यों का
हमारा दल था जिसमें मैं ,मेरी पत्नी सुनीता ,बहन वीणा और बहनोई अशोक गोस्वामी , हमारे पडोसी कलि राम और उनकी पत्नी शामिल थे |
सुबह 2:30 की ट्रेन थी अतः हम सारी तैयारी
करके शाम का खाना जल्दी ही खा कर जल्दी ही सोने के लिए लेट गए पर नींद नहीं आई |
समय पर उठ कर घर को ताला लगा कर सामान ले
कर बाहर आये तो देखा बारिश हो रही थी | सामने से कलीराम भी गाड़ी
निकलवा कर समान रखवा रहे थे हम भी समान
डिक्की में रख कर जल्दी से गाड़ी में बैठ गए | कुरुक्षेत्र के स्टेशन पर सभी सदस्य एकत्रित हो
गए | गाडी लगभग ठीक समय
पर पहुच गयी | स्थान आरक्षित होते
हुए भी गाड़ी में इतने कम समय पर डिब्बे में चढ़ना आसान नहीं था | अंदर से कोई डिब्बा खोलने के लिए तैयार ही नहीं
था |आरक्षित डिब्बे में
भी ऐसे यात्रियों की बहुत भीड़ थी जिनका कोई आरक्षण नहीं था यह बहुत असुविधाजनक और
असुरक्षित है और रेल विभाग को इस और ध्यान देने की आवश्यकता है | खैर किसी प्रकार हम सभी अपनी अपनी सीट पर पहुच गए
| तालमेल करके हमने
अपनी सीटें आस पास ही कर ली और सो गए | दिन भजन कीर्तन करते हुए बीत गया और
शाम को लगभग 6:30 पर गाडी इलाहाबाद पहुँच गयी| हमारे सदस्यों में एक वाराणसी के पास के रहने
वाले पंडित उत्तम जी थे जिन्होंने दो गाडियां पहले से ही 14000/ रूपए मेंपूर्ण
यात्रा के लिए बुक करवा रखी थी | स्टेशन से बाहर आते ही हम उन वाहन चालकों के साथ वाहनों की और चल दिए | बारिश ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा था | सड़क पर इतना पानी भरा था की बुलेरो गाड़ी में चढ़ते
हुए जूते भी पूरी तरह से भीग गए | पास के ही एक मंदिर में जा कर पहले सभी ने अपने अपने घर से लाया खाना
खाया | सुनीता ने पूरियां
और सूखे आलू बना रखे थे ,हमने उन्हीं का डिनर किया | इसके बाद हम सब चित्रकूट की ओर रवाना हुए जो इलाहबाद से लगभग दो
सौ किलो मीटर की दूरी पर था | चित्रकूट वाली सड़क पर बड़ा भयंकर जाम लगा हुआ था
जिसका कोई ओर छोर नजर ही नहीं आ रहा था | चार
घंटे हमें उस जाम में से निकलने पर लग गए और रात चार बजे हम चित्रकूट पहुंचे |
सोने के लिए बड़ी कठिनता से दो कमरे एक
मंदिर में मिले जिसमें दरी बिछी हुई थी | रात को बाकी सभी तो सो
गए पर मुझे नींद ठीक से नहीं आई |24-2-12 की सुबह उठ कर सभी स्नान के लिए चित्रकूट
के घाट पर चल दिए | स्नान करके घाट पर
ही स्थित मंदिर में गए जहां तुलसी दास जी की सुन्दर और मनोरम प्रतिमा स्थापित थी |
वहीं पर एक चाय की दुकान पर नाश्ता पानी किया |चाय बड़े छोटे छोटे कप में मिल रही थी भला उसमें हमारा क्या होता | सभी ने दो दो कप चाय के लिए तो कुछ तसल्ली हुई
वहाँ से हम एक पहाड़ी
पर स्थित सीता रसोई और हनुमान मंदिर देखने गए | वहाँ तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का मार्ग था
जिसके दोनों और बड़े बड़े पत्थरऔर जंगल था | बड़ी संख्या में लंगूर थे जो बड़े शांत थे | किसी भी यात्री को कुछ भी नहीं कह रहे थे |मैंने उनके कुछ चित्र भी लिए | मंदिर के बिलकुल नीचे एक कुआं था जिसमें गोलाकार
सीढियां बनी हुई थी |
पास ही माता
अनुसुइया का मंदिर था जिसके दर्शन हम सब ने किये | मंदिर में रामायण के सभी महत्वपूर्ण दृश्य अंकित
किये गए हैं जो बड़े सुन्दर और प्रेरणाप्रद लगते हैं |यहाँ भी लंगूर वानरों की भरमार थी |
शाम के पांच बजे के
आस पास हम इलाहाबाद के लिए चल पड़े ताकि 25-2-2012 को पूर्णिमा तिथि में कुम्भ
स्नान हो सके | कुम्भ नगरी में
प्रवेश करके हमने अपनी गाडियां बाहर ही छोड़ दी और लगभग तीन चार किलो मीटर पैदल चल
कर त्रिवेणी स्थल पर पहुच गए | तीन तरफ जन सैलाब था और सामने संगम | चारों और जगमगाती रोशनियों में संगम का वह दृश्य
अलौकिक लग रहा था | हम सब ने कुछ समय
संकीर्तन किया और पूर्णिमा तिथि लगते ही त्रिवेणी में जी भर कर स्नान किया और
पितरों को तर्पण दिया |सभी ने साथ लाये
अपने पात्रों में त्रिवेणी का पवित्र जल भर लिया और वापिस चल पड़े |
इलाहाबाद हम रुके
नहीं बल्कि साथ ही काशी जी की और चल पड़े | काशी में हम सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में ठहरे | विश्वविद्यालय के भवन बहुत प्राचीन तथा भव्य हैं | परन्तु रख रखाव की बहुत कमी नजर आई |थोडा आराम करके एक ढाबे पर खाना खाया और बोद्धों
के तीर्थ स्थल सारनाथ देखने के लिए चल दिए | सारनाथ बहुत ही सुन्दर और दर्शनीय स्थल है |
अनेक स्थलों पर बुद्ध धर्म के अनुयायी उपासना
में लीन थे | विदेशी पर्यटक भी
बहुत बड़ी संख्या में भ्रमण कर रहे थे | हमारा राष्ट्रीय चिन्ह को इसी सारनाथ के स्तम्भ से अपनाया गया है|
सारनाथ में एक
म्यूजियम भी है पर समय की कमी के कारण हम उसे नहीं देख सके | वापसी में गंगा घाट के निकट कुछ मंदिरों का दर्शन
किया जिनमें हनुमान मंदिर और खाटू श्याम जी के मंदिर प्रमुख थे | काशी जी के घाटों की शोभा निराली है | गंगा जी में सुन्दर और अलंकृत नौकाएं दूर दूर तक
तैरती हुई दिखाई दे रही थी | उत्तम जी ने बताया कि कुल अस्सी घाट हैं जिनमें मणिकर्णिका और
दशाश्वमेध घाट प्रसिद्ध हैं | देवकीनंदन खत्री के प्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता
सन्तिति और भूतनाथ में भी इन घाटों का उल्लेख मैंने पढ़ा है |पर मुझे सफाई कि कमी वहाँ पर बहुत खली | घाटों में घूमते हुए हम बाहर आ गए और रात्रि भोजन करके अपने ठहरने के स्थान
पर पहुँच गए | मच्छर बहुत ही अधिक
थे अतः मैं रात को ठीक से सो नहीं पाया | अगले दिन प्रातः तीन बजे उठ कर हम सभी ने काशी जी के दशाश्वमेध घाट पर
स्नान किया और चार बजे काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए लाइन में लग गए | बहुत भीड़ थी क्योंकि कुम्भ स्नान करने वाले सभी
यात्री काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए आ रहे थे |लाइन बहुत लंबी थी और चींटी कि गति से आगे बढ़ रही
थी | मैंने देखा कि कुछ
पंडे या दलाल 500/- से 1000/- रूपए प्रति
व्यक्ति ले कर पुलिस कि सहायता से उन लोगों को अवैध तरीके से आगे पहुंचा रहे हैं |
लाइन में खड़े लोग विरोध भी कर रहे थे पर
कोई सुन नहीं रहा था | पुलिस ,पंडों और दलालों का यह गठजोड़ ऐसे धर्म के स्थान
पर ऐसे अधर्म के कार्यों में संलग्न था जो घोर निंदनीय है | पर जनता में ही धर्म कहाँ है ? लाइन में न लग कर ,अधर्म का सहारा ले कर क्या सत्य में काशी
विश्वनाथ के दर्शन होंगे ? धन्य है भारत कि वह धार्मिक
जनता जो उस ईश्वर को भी मूर्ख समझती है जिसके दर्शन करके वह अपनी आत्मा का उद्धार
करना चाहती है | कैमरा ,मोबाइल इत्यादि ले जाना मना था | रास्ते में अनेक बार तलाशी भी हुई | सुरक्षा के प्रबंध बड़े कड़े थे | लगभग चार घंटे लाइन में सरकते हुए हम विश्वनाथ जी
के द्वार पर पहुच गए | मंदिर में प्रवेश
करके विश्वनाथ जी पर जलाभिषेक किया और दर्शन किये |उस स्थान पर एक अलौकिक उर्जा का अनुभव हुआ |
ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए कुछ समय
हमने वहीँ व्यतीत किया | साथ ही अन्नपूर्णा माता का मंदिर था जिसमें हम सब ने प्रसाद ग्रहण
किया | लगभग दिन के ग्यारह
बज चुके थे और शाम को 3:20 पर वाराणसी के स्टेशन से श्रमजीवी एक्सप्रेस वापसी की
गाडी पकडनी थी | हम वापिस
सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय गए ,अपना सारा सामान गाडी में रखा और वहाँ से भैरव मंदिर चले गए | कहते
हैं की काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद भैरव मंदिर में अवश्य जाना चाहिए | भैरव के दर्शन करके और नजर के काले धागे ले कर हम
सीधे रेलवे स्टेशन पहुँच गए | गाडी दो घंटे लेट आई |सारी रात सो कर निकल गयी और दिल्ली हम प्रातः 7:50 पर पहुँच गए|
वहाँ से 8:10 पर कुरुक्षेत्र के लिए
साधारण यात्री गाडी मिल गयी जिसने 11:50 पर हमें कुरुक्षेत्र पहुंचा दिया |
सारी यात्रा बहुत आनंद दायक और भाव पूर्ण
रही यद्यपि ठहरने का समुचित प्रबंध न होने के कारण शारीरिक थकान का प्रभाव भी रहा |
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